शहर से मन ऊबा तो पहाड़ों में जाकर बस गए, ऐसा घर बनाया जो 100 सालों तक कमजोर नही पड़ेगा

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eco stayhome of this uttrakhand couple

हम कभी भी अगर अपनी भाग-दौड़ भरी जीवन से थक जाते है तो सोचते है की कही ऐसे शांत पहाड़ी जगह पे घूम आए जहाँ जाके हमारे मस्तिष्क को शांति मिले, अब आप ये सोचिए कि अगर आपका घर वहां होता तो आपको कितने आनंद की प्राप्ति होती है, एक दंपति ने अपने इस सपने को साकार किया है, आइए जानते हैं उनके बारे में।

दंपति का परिचय-

ये दंपति दिल्ली के रहने वाले है, जिसमे पति का नाम अनिल चेरुकुपल्ली और पत्नी का नाम अदिति है। इस दंपति ने सादा जीवन जीने के लिए साल 2018 में शहरी जीवन का त्याग कर दिया। उन्होंने ये तय कर लिया था कि वो पहाड़ो में अपना आशियाना बसायेंगे, परन्तु समस्या ये थी कि उनके पास आर्किटेक्चर की कोई डिग्री नही थी ना ही कंस्ट्रक्शन का कोई अनुभव, इसलिए उन्होंने अपने महीनों के शोध के बाद स्थानीय राजमिस्त्रियों का सहयोग लिया।

 

ये दंपति ट्रेवल लवर्स है, इन दोनों को पर्यावरण के छेत्र में काम करने का बहुत अच्छा अनुभव है, उन दोनों ने ” वर्ल्ड वाइड फण्ड फ़ॉर नेचर” और वन्यजीवों व इकोसिस्टम के संरक्षण के दिशा में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनो ( NGO) में काम किया है।

सुकून और आराम से जीना चाहते है-

अनिल का कहना है कि इनदोनो के नौकरी की वजह से उनकी सोच में बदलाव हुआ है, एक छोटा सा घर और एक फार्म वाली संपति के इस आईडिया ने उन्हें संतुष्ट कर दिया। उन्हें मेहमानों के लिए ऐसी ही जगह चाहिए थी जहाँ वो आराम से और सुकून से रह सके, इसलिए उन्होंने अपने फार्मेस्ट के लिए इस जगह को चुना।

इस दंपति ने उत्तराखंड के फगुनीखेत के छेत्र में 5000 फ़ीट उपर ” faguniya farmstay” की स्थपना की जिसे देख कर आपका मन तृप्त हो जाएगा, घने जंगलों और झरनों के बीच 3 मंजिला घर ऐसा लगता है मानो हम स्वर्ग के दर्शन कर रहे हो। इस घर की एक और खास बात ये है कि ये घर कुमायूँ के पारंपरिक “आर्किटेक्चरल प्रैक्टिसेज” से बनाया गया है, जो पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ ही साथ भूकंप प्रतिरोधी भी है। प्रत्येक कुमायूँ स्ट्रक्चर की तरह इस घर को भी पत्थर और लकड़ी से कुछ इस तरह बनाया गया है कि जिससे घर का तापमान अनुकूल बना रहता है।

 

बहुत मजबूत है ये घर-

इस दंपति का कहना है कि इस घर को बनाने में जिस मेटेरियल का इस्तेमाल हुआ है इस वजह से ये घर सदियों तक चलेगा। उनका कहना है कि घर के निर्माण के दौरान उन्होंने पहाड़ी ढलानों पर बिल्डिंग का दवाब कम करने के लिए अपनी साइट की पुरानी रूपरेखा का पालन किया इनदोनो, उनका कहना है कि ये उनके फार्मेस्ट को लंबे समय तक ठीक रखेगा। इस प्रक्रिया में उन्होंने ना ही किसी पेड़ को काटा है ना ही किसी नई पहाड़ी ढलानों को।

 

इस दंपति की दिल्ली में हेप्टिक जॉब थी, उनके लिए ये आसान नही था कि कार्बिन फुटप्रिंट जेनरेटे किये बिना कुमायूँ शैली का घर बनाने की हिदायते देना स्थानीय ठेकेदार को, इसलिए उनके सपनो के घर को बनने में 2 साल से अधिक का समय लगा।

इस घर की दीवारें और छत स्वदेशी आर्किटेक्चरल स्टाइल में बनाने के लिए हिमालयी लैंडस्केप के स्थानीय संसाधनों जैसे- पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। नींव के काम के लिए सीमेंट का एक छोटा सा हिस्सा प्राइमरी बॉन्डिंग मटेरियल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

अदिति कहती है कि उनके घर के लिए 70 प्रतिशत से अधिक लकड़ी और पत्थर पहले से ही उनके साइट पर मौजूद थे जिसे जिसे पहले घर से Recycle और Up cycle किया गया था। इस घर की खिड़कियां ऐसे बनाई गई है जिससे कि इस घर मे भरपूर प्राकृतिक रौशनी आ सके।

सस्टेनेबल घर-

इस दंपति ने कहा कि दो फुट मोटी पत्थर की दीवार इस घर को गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम रखने में मदद करेगी। क्योंकि वो ऐसे पहाड़ी जगह पर है जहाँ सालभर मौसम ठंड ही रहता है, इसलिए कुमायूं की हर घर की तरह इस घर मे ही कॉम्पैक्ट है जो इसे आरामदायक बनाता है। इस घर के अधिकतर इंटीरियर में टेबल कुर्शी और एक बुकशेल्फ जैसे फर्नीचर का प्रयोग किया गया है।

इस दंपति ने बाथरूम के लिए भी एक सेंट्रलिसेडसौर वॉटर हीटर के साथ सौर ऊर्जा बैकअप इन्वर्टर सिस्टम भी लगाया है जो प्रतिदिन 5 से 8 यूनिट ऊर्जा उत्पन्न करता है।

ग्रेटवाटर और बजरी रेत को कई फ़िल्टरिंग परतों वाले सोक पिट तक ले जाया जाता है, जिससे पानी जमीन के नीचे रिसता है बर्बाद नही होता है। ट्विन पिट टॉयलेट सिस्टम की मदद से काले पानी या सीवेज वाटर को खाद में बदल देते है, इससे ये होता है कि घर के गीले कचरे से खाद बन जाती है और प्लास्टिक कचरे को सुरक्षित रूप से जला दिया जाता है।

 

मसाले उगा रहे है-

ये दंपति प्रकृतिक उर्वरकों का उपयोग कर हल्दी, अदरक, ककड़ी, तोरी, शिमला मिर्च, बैगन जैसे जैविक खाध पदर्थों को उगाने के लिए करते है, हाल ही उन्होंने Buckwheat उगाना शुरू किया है। उनकी योजना जल्द ही बाजरा की खेती करने की है। इस दंपति की योजना अपने प्लॉट पर परमाकल्चर खेती को लागू करने की इक्छा है। इसके साथ ही दोनो का कहना है कि अभी सौ प्रतिशत आत्मनिर्भर बनने में और zero waste वाले फार्मस्ट के लिए अभी लंबा सफर तय करना है उन्हें, इसके साथ ही उनदोनो ने कहा कि एक बड़े लक्ष्य प्राप्ति के लिए उन्होंने छोटा कदम उठाने का प्रयास किया है।

इस दंपति का कार्य सरहानीय है, हमारी तरफ से इन्हें ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।

अनामिका बिहार के एक छोटे से शहर छपरा से ताल्लुकात रखती हैं। अपनी पढाई के साथ साथ इनका समाजिक कार्यों में भी तुलनात्मक योगदान रहता है। नए लोगों से बात करना और उनके ज़िन्दगी के अनुभवों को साझा करना अनामिका को पसन्द है, जिसे यह कहानियों के माध्यम से अनेकों लोगों तक पहुंचाती हैं।

19 COMMENTS

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