घर के कचड़े से खाद और उसी खाद से सब्जियां, पिछले 12 साल से ऐसी ही जीवन जीती है यह महिला

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Anisha madan lives eco friendly life since 12 years

आजकल के इस भाग-दौर भरी जिंदगी में हर किसी को स्वास्थ संबंधी बिमारियों का खतरा बना रहता है। इसका मुख्य कारण आधुनिक तकनीकों से की जाने वाली खेती से प्राप्त साग-सब्जियां तथा अन्न है। आज हम बात करेंगे एक ऐसी महिला की, जिसने आज के समय में भी घर के वैस्ट कचरे का उपयोग करके कम्पोस्ट फार्मिंग का काम करती है।

तो आइए जानते हैं उस महिला से जुड़ी सभी जानकारियां :-

कौन है वह महिला?

हम अनीशा मदान (Anisha Madan) की बात कर रहे हैं, जो मूल रूप से उतराखंड (Uttarakhand) की रहने वाली है। उनकी उम्र 47 वर्ष है। पेशे से वह ग्राफिक डिज़ाइनर और कंटेंट डेवलपर हैं। वह फिलहाल पिछ्ले 12-13 सालों से ईको फ्रेंडली जीवन जी रही है।

कैसे आया ख्याल?

अनीशा मदान (Anisha Madan) फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई की है, इसके बाद जब वह इस इंडस्ट्री में नौकरी शुरू की तो समझ में आया कि यह पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है। कुछ समय तक फैशन इंडस्ट्री में वह बतौर ग्राफ़िक डिज़ाइनर काम करने लगी। अपने काम के दौरान उन्होंने देखा ही था कि हम पर्यावरण को कितना प्रदूषित करते हैं। इसी बीच 2005 में उन्हें पता चला कि उन्हें ‘एंडोमेट्रिओसिस‘ (एक बिमारी) है। इस बीमारी का इलाज के दौरान उन्हें पता चला कि कैसे मेकअप, ब्लीच, पेस्टिसाइड, सैनिटरी नैपकिन आदि हमारे लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं।

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आदतों में की सुधार

• यात्रा करते समय, अपने साथ बर्तन लेकर चलती हैं ताकि कुछ प्लास्टिक क्रॉकरी में न लेना पड़े।
• • हर तरह के काम के लिए वह प्लास्टिक या पॉलीथिन की जगह सूती बैग लेती हैं।
• घर में प्लास्टिक और रसायनों का प्रयोग एकदम न के बराबर है। बाल धोने के लिए शैम्पू बार का इस्तेमाल करती हैं। बांस के टूथब्रश और लकड़ी की कंघी के अलावा, चेहरा धोने के लिए वह घर पर ही उबटन बनाती हैं।
• • घर की साफ-सफाई के लिए वह बायोएंजाइम बनाती हैं ताकि हानिककारक रसायनयुक्त क्लीनर्स घर में न आएं।
• सूखी हुई तोरई से लूफा बनाती हैं।
• • रसोई में भी कांच और स्टील के बर्तन इस्तेमाल होते हैं।
• घर में लगभग सभी फर्नीचर सेकंड-हैंड और बांस व सरकंडे का बना हुआ है।
• • घर में जो भी पेपर आता है उसे वह अपसायकल या रीसायकल करती हैं। जैसे पुराने बिल्स को इकट्ठा करके नोटपैड की तरह इस्तेमाल करना।
• पीरियड्स में वह कपड़े के सेनेटरी नैपकिन या मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं।

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कम्पोस्ट खेती तथा सौर ऊर्जा पर है निर्भर

अनीशा मदान अपने घर से जुड़ी साग-सब्जियों तथा खेती से संबंधीत अन्य चीजों के लिए सेल्फ डिपेंडेट है। वह इसके लिए अपनी बगीचा लगाई हुई है। अपने बगीचे में वह तरह-तरह के पेड़-पौधे लगाती हैं। उनक कहना है कि हमारे घर में कोई भी पत्तेदार हरी सब्जी जैसे पालक, मेथी, पोइ साग, चौलाई, आदि बाजार से नहीं आती है। इसके अलावा, चार-छह महीने के लिए लहसुन भी हम अपने घर में लगा लेते हैं। गर्मियों और सर्दियों में मौसम की सभी सब्जियां लगाते हैं ताकि उस समय हमें ज्यादा सब्जियां बाहर से न खरीदनी पड़े।

इसके साथ हीं साथ वह लगभग आठ-नौ महीने पहले अपने घर में पांच किलोवाट का सोलर प्लांट लगवाई है। उनक यह प्लान ऑन-ग्रिड सिस्टम है। सौर ऊर्जा इको-फ्रेंडली होने के साथ-साथ किफायती भी है। रसोई से लेकर बाथरूम में, सभी जगह बिजली के उपकरण इस्तेमाल होता है इसके बावजूद भी अब बिजली का बिल बहुत ही कम आता है। पहले उनके घर का बिजली बिल तीन-चार हजार रुपए आता था, लेकिन अब यह 400 से 700 रुपए आता है।

लोगों के लिए बनी प्रेरणा

अपने मेहनत और संघर्ष के बदौलत बड़ी सफलता हासिल करते हुए खुद का नाम रौशन करने वाली अनीशा मदान (Anisha Madan) ने अपनी लाइफ स्टाइल हीं बदल रखी है। वह जिस तरह से ईको फ्रेंडली तरीके से जीवनयापन कर रही है, वह काबिले तारीफ है। स्वास्थ के दृष्टिकोण से उनके द्वारा उठाया गया उनक यह कदम काफी प्रेरणादायी है।

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