आजकल के आधुनिक युग में सरकार ने खेती के बढ़ावे के लिए एक से एक यंत्रों को बढ़ावा दिया है। सरकार चाहती है कि, लोग पढ़ाई-लिखाई के बाद भी नौकरी नहीं मिलने की स्थिति में बेरोजगार न रहें। आज हम बात करेंगे एक ऐसे शख्स की, जिसने मछली पालन के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
तो आइए जानते हैं उस शख्स से जुड़ी सभी जानकारियां:-
कौन है वह शख्स ?
हम बात कर रहे हैं नरेश महतो (Naresh Mahato) की, जो मूल रूप से बेगुसराय (Begusarai) के रहने वाले हैं। उन्होंने किशनगंज से इलेक्ट्रिक ट्रेड डिप्लोमा करने के बाद पावर हाउस बखरी में करीब सात सालों तक काम किया। इसी दौरान उसने यूट्यूब पर मछली पालन की तकनीक देखी। इसके बाद उसने नौकरी छोड़ इसी धंधे में उतरने की सोची। फिर मुजफ्फरपुर के केंद्रीय मात्यसिकी अनुसंधान केंद्र से छह दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया और इस कार्य जुट गए।

क्या है बायोफ्लॉक तकनीक (biofloc technique)?
बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया का नाम है। इस तकनीक में बड़े-बड़े टैंकों में मछली पाली जाती हैं, करीब 10-15 हजार लीटर पानी के टैंकों में मछलियां डाल दी जाती हैं। इन टैंकों में पानी भरने, गंदा पानी निकालने, पानी में ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होती है। बायोफ्लॉक तकनीक से कम पानी और कम खर्च में अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं।
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शुरु किया कारोबार
मुजफ्फरपुर से ट्रेनिंग लेने के बाद नरेश (Naresh Mahato) ने मछलियों के पालने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने 23*23 फीट के टैंक में पांच किस्म की मछलियां पाला। इसमें फंगास, आंध्रा, तिलापिया, कबई और देशी मांगर शामिल हैं। एक टैंक में करीब 9 क्विंटल मछलियां पाली जा सकती हैं। मछली का विचरा, पानी, ऑक्सीजन, भोजन, मजदूरी आदि पर करीब 40 हजार रुपए खर्च आते हैं। छह माह में 200-700 ग्राम की मछलियां तैयार होकर बेचने लायक हो जाती हैं।

दोगुना मुनाफा
बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) में खर्चा सामान्य मछलीपालन के मुकाबले कम ही आता है। फिर चाहे खर्चा श्रम का हो, समय हो, देखभाल का हो या फिर रुपयों का ही क्यों ना हो। हर तरीके से बायोफ्लॉक तकनीक एक आदर्श तकनीक है। शायद यही काऱण है इससे मछलियों की गुणवत्ता को बेहतर रहती ही है, साथ ही इसके दाम भी बाजार में अच्छे मिल जाते हैं।
एक बातचीत के दौरान नरेश (Naresh Mahato) ने उदाहरण स्वरूप बताया कि 10 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक के निर्माण और रखरखाव में 5 साल के दौरान सिर्फ 32 हजार की लागत आती है। जबकि मछली को पालने में 24 हजार रुपए का खर्च होता है। क्योंकि उनके मल से ही भोजन का निर्माण होता है, इसलिए मछली के दाने में 3 के बजाय सिर्फ 2 बोरी दाना ही काफी रहता है।
वहीं बाजार में इसकी बिक्री की बात करें तो, लगभग 3.4 क्विंटल वजन की मछली का बाजार में दाम लगभग 40 हजार होता है। ऐसे में कुल मिलाकर उन्होंने इस तकनीक से मछली पालन में दोगुना मुनाफा बताया।
मिल रही सफलता
तालाब में मछली पालन के पारंपरिक तरीके के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक के कई लाभों को देखते हुए और मछली पालकों को इसका ज्यादा उत्पादन दिखाने के लिए इसे में पेश किया जा रहा है। यह तकनीक पहले ही कई राज्यों में अपनाई जा चुकी है और इस तकनीक से कई यूनिट सफलतापूर्वक चल रही हैं।
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