हमारा देश भारत बड़े पैमाने पर मसालों के उत्पादन के वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है, इसलिए इसे मसालों का देश भी कहा जाता है। यहां पर अनेकों प्रकार के मसालों का उत्पादन होता है। अब हर राज्य के किसान मसालों की खेती आधुनिक तकनीक से कर रहे हैं, जिस कारण यहां के किसान मसालों की खेती कर अच्छी मुनाफा कमा लेते हैं।
आज हम बात करेंगे लौंग के बारे में, जो एक बहुत हीं उपयोगी मसाला है और इसका उपयोग डिशज़ बनाने से लेकर अनेक प्रकार की घरेलू दवाई , टूथपेस्ट, दंत मंजन, गर्म मसाले समेत विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट्स बनाने के लिए किया जाता है।
लौंग की खेती (Clove Farming)
हम जानते हैं कि भारत में लौंग का उपयोग बहुत ज्यादा किया जाता है। इसका उपयोग चाय बनाने से लेकर घरेलू दवाई बनाने तक में होता है। इसके उपयोग से इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग रहता है तथा मुंह से बदबू नहीं आता है। इसकी अधिक इस्तेमाल के वजह से बाजारों में इसकी खूब मांग है। ऐसे में अगर कोई किसान लौंग की खेती (Clove Cultivation) करता है, तो वो अच्छा मुनाफा कमा सकता है।

कैसे होती है इसकी खेती?
लौंग की खेती (Clove Cultivation) ठंडे इलाकों में विकसित नहीं हो पाता है। इसकी खेती करने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 32 डिग्री सेल्सियस के तापमान की जरूरत होती है तथा बलुई मिट्टी पर हीं इसकी फसल को उगाया जाता है।
लौंग की खेती करने के तरीके
1⟩ लौंग के बीज को बुआई से एक रात पहले 8 से 10 घंटे तक पानी में भिगो कर रखना पड़ता है।
2⟩ फिर आप लौंग के बीज को बोने के लिए अपने खेत की मिट्टी में जैविक खाद मिलाकर मिट्टी को बीज बोने लायक तैयार कर लें।
3⟩ इसके बाद 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर मिट्टी में गड्ढा करके लौंग के सभी बीज को एक लाइन में लगा दीजिए।
4⟩ फिर पानी का छिड़काव मिट्टी के ऊपर हल्का-हल्का कर दीजिए और इस प्रक्रिया को नियमित रूप से दोहराते रहे।
बता दें कि, लौंग की खेती की सिंचाई के लिए बहुत कम पानी जरूरत होती है। इसकी सबसे खास बात यह है कि अगर सही से देखभाल किया जाए तो लौंग का पेड़ एक बार लगाने पर लगभग 100 सालों तक जीवित रह सकता है।
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कैसे करें लौंग की फसल की देखभाल?
बता दें कि, लौंग के बीज को सिर्फ अंकुरित होने में 1 से 2 महीने का समय लगता है और इसका पौधा तैयार होने में 2 से 3 साल का समय लग जाता है। फिर इसके के पौधे में फूल आने शुरू हो जाते हैं और फल आने में 5 साल का समय लगता है। इसके फल गुच्छों में लगते हैं और उनका रंग हल्का लाल या गुलाबी होता है।
जब लौंग के पेड़ पर फल लगना शुरू हो जाता है तो इस फलों को पेड़ से तोड़कर धूप में सूखाया जाता है। धूप में सुखाने के बाद उन फलों को हाथ से रगड़ने पर ऊपरी छिलका हट जाता है और फिर हम भूरे रंग की लौंग प्राप्त होता है।

धूप में सुखाने के बाद घटता है वजन
लौंग के फल को धूप में सुखाने के बाद इसका वजन 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है और लौंग धूप में सूखकर 50 प्रतिशत तक सिकुड़ जाती है।
अगर लौंग की खेती आप कर रहे हैं तो आपको इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि लौंग के खेत में जल निकासी होना बेहद जरूरी है, क्योंकि लौंग के फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है, अगर खेत में पानी जमा हो जाता है तो पौधे सड़ने लगते हैं और फसल बर्बाद हो जाती है। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि लौंग के खेत में जैविक खाद हर 3 से 4 साल पर डाला जाता है।
कैसे करें लौंग के खेत की सिंचाई?
बता दें कि, गर्मी के मौसम में लौंग के खेत में नियमित रूप से थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करने की जरूरत होती है, वहीं अगर सर्दी के मौसम की बात करें तो 2 से 4 दिन के अंतराल में इसकी सिंचाई करनी पड़ती है। इसके अलावें हमे लौंग के खेती करने से पहले इस बात का ध्यान रखना होगा कि लौंग के पौधे को छायादार और हवादार जगह में ही लगाए जाए क्योंकि इनके पौधों पर बहुत तेज धूप नहीं पड़नी चाहिए।